नुक्कड़ पर चुनाव: पहिले मच्छर मरवाइये तब देने जाएंगे भोट








एक त पसीना चुआवे वाला गर्मी, ऊपर से मच्छर के उत्पात। नगर निगम वाला चुनाव के टाइम भोट ले लेता है और मच्छर के खुल्ला छोड़ देता है खून चूसने के लिए। रातभर गमछा से रोमते रहते हैं। सोना मुश्किल हो गया है। मच्छरवा सब मच्छरदानियों में घुस के काट लेता है। इहे खातिर एको गो भोट इस बार हमर परिवार नहीं देने वाला है। हम त अपन मेहरारू आ दुनू बेटा-पतोह के भी कह दिए हैं कि केकरो भोट नहीं देना है। 


ये बातें गुस्से से तमतमाये एक 60-65 साल के बुजुर्ग रामलखन सिंह यादव कॉलेज कोकर के समीप की चाय दुकान पर शाम में गमछा से मच्छर भगाते हुए अपने कुछ हमउम्र लोगों से कह रहे थे। चूंकि मैं भी वहां चाय पीने के लिए रुका था, तो उनकी बातों को ध्यान से सुनने लगा।


बुजुर्ग व्यक्ति मच्छर को लेकर इतना गुस्से में थे कि लगातार बोलते रहे- धुआं वाला (फॉगिंग) मशीन के अता-पता नहीं है। दू-तीन महीना से ऊ मशीन कोकर तरफ दिखबे नहीं किया है। जब नेतवन सब एगो मच्छर नहीं मरवा पा रहा है, त ओकरा सब के भोट देबे से का फायदा है। सब फालतू में आसन-भाषण देके लोक के बहलाता रहता है, करता है कुछो नहीं।

उसी में से एक अन्य बुजुर्ग बोला- वोट तो देना ही चाहिए। आप वोट नहीं भी दीजियेगा तब भी कोई-न-कोई तो जीतेगा ही। तब गुस्सैल बुजुर्ग बोला- जानते हैं कि नहीं, जे नेता कभी भी मुहल्ला तरफ झांकने नहीं आता था, आज-कल ऊ भी उजरका कुर्ता-पजामा झाड़ के हाथ जोड़ले दुआरी पर आकर कहता है भोट हमरे पाटी के दीजियेगा। अब बताइए खाली भोटे के टाइम दिखे वाला नेतवन के भोट देने से का फायदा होगा। हमरा इहां त जे आता है हम ओकरा एके बात कहते हैं, पहिले मच्छर मरवाइये तब भोट देंगे। आ सही बात कह रहे हैं कि चुनाव के पहिले मच्छर मारे के कोई उपाय नहीं हुआ त हम भोट भी कोनो पाटी के नहीं मारेंगे। वोट को लेकर उनकी बातें चल ही रही थी, मैं वहां से निकल गया।

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